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चाँद-सूरज न सही एक दिया हूँ मैं भी - शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी कविता - Darsaal

चाँद-सूरज न सही एक दिया हूँ मैं भी

चाँद-सूरज न सही एक दिया हूँ मैं भी

अपने तारीक मकानों में जला हूँ मैं भी

अपने अस्लाफ़ की अज़्मत से जुड़ा हूँ मैं भी

अपनी तहज़ीब की मुट्ठी में दबा हूँ मैं भी

तुम भी गिरती हुई दीवार को कांधा दे दो

अपने पैरों पे इसी तरह खड़ा हूँ मैं भी

मेरी ख़ामोशी-ए-लब का है सदा से रिश्ता

ये न समझे कोई बे-सौत-ओ-सदा हूँ मैं भी

कोई ढूँडे मिरे चेहरे पे थकन के आसार

वक़्त के साथ तो इक उम्र चला हूँ मैं भी

जाने कब किस के सँवरने का इरादा जागे

इस लिए सूरत-ए-आईना रहा हूँ मैं भी

झुक के मिलने की अज़ल ही से है फ़ितरत 'शाइक़'

गरचे सर-बस्ता-ए-दस्तार-ए-अना हूँ मैं भी

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In Hindi By Famous Poet Shaiq Muzaffarpuri. is written by Shaiq Muzaffarpuri. Complete Poem in Hindi by Shaiq Muzaffarpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.