हस्ती से ता-अदम है सफ़र दो क़दम की राह
क्या चाहिए है हम को सर अंजाम के लिए
Wasi Shah
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है राह-ए-आशिक़ी तारीक और बारीक और सुकड़ी
इश्क़ ने किश्वर-ए-दिल लूटा है
बाज़ार से आए हाथ ख़ाली
जो जी में आवे तो टुक झाँक अपने दिल की तरफ़
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
जो मिरे हम-अस्र हम-सोहबत थे सो सब मर गए
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
अदल से कर सल्तनत ऐ दिल तू तन के मुल्क में
तीर-ए-निगह लगा के तुम कहते हो फिर लगा न ख़ूब
'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
इश्क़ के शहर की कुछ आब-ओ-हवा और ही है
ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ