तौबा ज़ाहिद की तौबा तल्ली है
चिल्ले बैठे तो शैख़ चिल्ली है
दिल में है मक्र व हाथ में तस्बीह
ये इबादत नहीं चबल्ली है
रीश है ये कि शाख़-ए-शाना है
जिस की रिंदों के बीच खिल्ली है
पगड़ी अपनी यहाँ सँभाल चलो
और बस्ती न हो ये दिल्ली है
सग-ए-शेर-ए-ख़ुदा है तू 'हातिम'
ख़ारिजी तेरे आगे बिल्ली है