हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स
हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स
बर्क़ गिर्द उस के करे है आ के बे-ताबाना रक़्स
दौर में चश्म-ए-गुलाबी के तिरे ऐ बादा-नोश
बज़्म में करता है मस्तों की तरह पैमाना रक़्स
इस क़द ओ रुख़्सार पर ऐ शम्अ-रू इस हुस्न पर
क़मरी ओ बुलबुल करे है वज्द और परवाना रक़्स
घुँगरू जाने है पाँव में वो ज़ंजीरों के तईं
क्यूँ न इस आवाज़ पर बन बन करे दीवाना रक़्स
जिस के घर आवे वो 'हातिम' नाज़ से रखता क़दम
उठ खड़ा हो कर करे इस आन साहिब-ख़ाना रक़्स
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