हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
अगर तदबीर हम करते हैं तो तक़दीर हँसती है
असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में
मिरे दीवाना-पन को देख कर ज़ंजीर हँसती है
कभू पहुँची न इस के दिल तलक रह ही में थक बैठी
बजा उस आह-ए-बे-तासीर पर तासीर हँसती है
तू सूरत उस की क्या खींचेगा अपनी देख तो सूरत
मुसव्विर इस तिरी तस्वीर पर तस्वीर हँसती है
वही है मर्द जो हो रू-ब-रू तरवार के 'हातिम'
कि मुँह के फेरते नामर्द पर शमशीर हँसती है
(453) Peoples Rate This