बंदा अगर जहाँ में बजाए ख़ुदा नहीं
बंदा अगर जहाँ में बजाए ख़ुदा नहीं
लेकिन नज़र करो तो ख़ुदा से जुदा नहीं
नुक़्ते का फ़र्क़ है गा ख़ुदा और जुदा में देख
सूरत में गर छुपा है ब-मअ'नी छुपा नहीं
हर शय के बीच आप निहाँ हो अयाँ हुआ
देखा तो हम ने उस सा कोई ख़ुद-नुमा नहीं
हैरान अक़्ल-ए-कुल की है उस की सिफ़त को देख
सब जा में जल्वा-गर है मगर एक जा नहीं
लज़्ज़त चखा के दिल के तईं हिज्र ओ वस्ल की
'हातिम' से मिल रहा है और अब तक मिला नहीं
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