अजब अहवाल देखा इस ज़माने के अमीरों का
अजब अहवाल देखा इस ज़माने के अमीरों का
न उन को डर ख़ुदा का और न उन को ख़ौफ़ पीरों का
मिसाल-ए-महर-ओ-मह दिन रात खाते चर्ख़ फिरते हैं
फ़लक के हाथ से ये हाल है रौशन-ज़मीरों का
क़फ़स में फेंक हम को फिर वहीं सय्याद जाता है
ख़ुदा हाफ़िज़ है गुलशन में हमारे हम-सफ़ीरों का
मुझे शिकवा नहीं बे-रहम कुछ तेरे तग़ाफ़ुल से
खुले-बंदों फिरे तू हाल क्या जाने असीरों का
दिल-ए-याक़ूत है तुझ लाल-ए-लब के रश्क से पुर-ख़ूँ
तिरे दंदाँ के आगे घट गया है मोल हीरों का
किया है उस निशाँ-अंदाज़ ने तरकश तही मुझ पर
मिरी छाती सिरा हो जिस उपर तोदा है तीरों का
हमें दीवान-ख़ाने से किसी मुनइम के क्या 'हातिम'
है आज़ादों के गर रहने को बस तकिया फ़क़ीरों का
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