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साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख - शैख़ मीर बख़्श मसरूर कविता - Darsaal

साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख

साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख

जिस वक़्त बहकने मैं लगूँ तब तू मज़ा देख

गर देखना है बुलबुल-ए-नालाँ का तमाशा

तो बाद-ए-सबा बाग़ में तू गुल को हँसा देख

बिगड़ी है शब-ए-वस्ल तो वो मुझ से कहे है

अब की तो बदन को तू मिरे हाथ लगा देख

पीछा तिरा छोड़ें न कभी बोसा लिए बिन

दो रोज़ हम ऐसों को ज़रा मुँह तो लगा देख

क्या फ़ाएदा गर उस के दिल-ओ-जाँ का ज़रर हो

'मसरूर' को यूँ ख़ूँ न रुला रंग-ए-हिना देख

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In Hindi By Famous Poet Shaikh Meer Bakhsh Masroor. is written by Shaikh Meer Bakhsh Masroor. Complete Poem in Hindi by Shaikh Meer Bakhsh Masroor. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.