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वस्ल की शब में भी हम बाहम दिगर रोया किए - शैख़ करिमुद्दीन मुरादाबादी कविता - Darsaal

वस्ल की शब में भी हम बाहम दिगर रोया किए

वस्ल की शब में भी हम बाहम दिगर रोया किए

मैं जुदाई से वो मेरे हाल पर रोया किए

उस ने ज़ानू ग़ैर का अपने रखा जब ज़ेर-ए-सर

अपने ज़ानू पर हम अपना रख के सर रोया किए

उस ने आँसू ग़ैर के पोंछे जब अपने हाथ से

हम-नशीं ये माजरा हम देख कर रोया किए

हो गया मुश्किल मिरी मिज़्गाँ से मिज़्गाँ का मिलाप

हाइल इक दरिया हुआ हम इस क़दर रोया किए

सुर्ख़-रू बे-आबरूई में भी हम 'सनअ'त' रहे

ख़ुश्क जब आँसू हुए लख़्त-ए-जिगर रोया किए

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In Hindi By Famous Poet Shaikh Karimuddin Muradabadi. is written by Shaikh Karimuddin Muradabadi. Complete Poem in Hindi by Shaikh Karimuddin Muradabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.