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वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे - इमदाद अली बहर कविता - Darsaal

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

उसे सल्तनत बेच कर मोल लेंगे

इजाज़त अगर सर पटकने की होगी

मुक़फ़्फ़ल दर-ए-यार हम खोल लेंगे

तबीबो न बख़्शे की सेहत ठण्ड आए

न जब तक कि ज़हर इस में हम घोल लेंगे

किसी दिन जो पल्टा मुक़द्दर हमारा

बिके जिस के हाथों उसे मोल लेंगे

गुलों से न होगी जो उक़्दा-कुशाई

गिरह दिल के काँटे से हम खोल लेंगे

हमें बाग़ जाने से ये मुद्दआ है

ज़रा बुलबुल-ओ-गुल से हँस बोल लेंगे

रिहाई न देंगे वो क़ैद-ए-सितम से

न जब तक मेरी जान को ओल लेंगे

बदन क्यूँ छुपाते हो ज़ेवर पहन कर

जवाहर के इक्के न हम खोल लेंगे

अभी हम से और उन से सोहबत नई है

जो मुँह लग चलेंगे तो हँस-बोल लेंगे

ग़म-ए-यार भी अब्र-ए-नैसाँ है ऐ 'बहर'

जो टपकेंगे आँसू गुहर रोल लेंगे

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