वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे
वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे
उसे सल्तनत बेच कर मोल लेंगे
इजाज़त अगर सर पटकने की होगी
मुक़फ़्फ़ल दर-ए-यार हम खोल लेंगे
तबीबो न बख़्शे की सेहत ठण्ड आए
न जब तक कि ज़हर इस में हम घोल लेंगे
किसी दिन जो पल्टा मुक़द्दर हमारा
बिके जिस के हाथों उसे मोल लेंगे
गुलों से न होगी जो उक़्दा-कुशाई
गिरह दिल के काँटे से हम खोल लेंगे
हमें बाग़ जाने से ये मुद्दआ है
ज़रा बुलबुल-ओ-गुल से हँस बोल लेंगे
रिहाई न देंगे वो क़ैद-ए-सितम से
न जब तक मेरी जान को ओल लेंगे
बदन क्यूँ छुपाते हो ज़ेवर पहन कर
जवाहर के इक्के न हम खोल लेंगे
अभी हम से और उन से सोहबत नई है
जो मुँह लग चलेंगे तो हँस-बोल लेंगे
ग़म-ए-यार भी अब्र-ए-नैसाँ है ऐ 'बहर'
जो टपकेंगे आँसू गुहर रोल लेंगे
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