फल आते हैं फूल टूटते हैं
फल आते हैं फूल टूटते हैं
ख़ुर्दों से बुज़ुर्ग छूटते हैं
खुलती नहीं गुल की बद-मिज़ाजी
ग़ुंचे नहीं मुँह से फूटते हैं
करते हैं यहाँ हसीं ताराज
नब्बाश लहद में लूटते हैं
होता है फ़िराक़ जान-आे-तन में
बुरों के मिलाप छूटते हैं
इक बुत से मोआमला दरपेश
पत्थर से नसीब फूटते हैं
आसेब हैं गेसूवान-ए-माशूक़
कब हम से लिपट के छूटते हैं
दिल ले के वो जान के हैं ख़्वाहाँ
हर पहर के मुझी को लूटते हैं
हर-वक़्त है कोफ़्त अपने दिल को
रह रह कर सीना कूटते हैं
ख़त पढ़ता है मेरा क्या कहूँ कौन
अग़्यार की दीद से फूटते हैं
रोने-धोने से फ़ाएदा 'बहर'
कब सीने के दाग़ छूटते हैं
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