न कह हक़ में बुज़ुर्गों की कड़ी बात
न कह हक़ में बुज़ुर्गों की कड़ी बात
कहेंगे लोग छोटा मुँह बड़ी बात
कहे इक बात फूले सौ शगूफ़े
शरीरों ने बनाई फुलझड़ी बात
मतानत है बहुत कम बोलती में
ख़मोशी दोपहर हो दो-घड़ी बात
मुझे भाता है हल्काना तुम्हारा
दहन-गुल की कली है गुल-झड़ी बात
बंधे मज़मून पर खोलो न मुँह 'बहर'
मज़ा देती नहीं कानों पड़ी बात
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