इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ
इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ
यूँ मैं दुनिया से उठा दाग़-ए-अज़ीज़ाँ न हुआ
मुस्तक़िल वज़्अ रही कुछ ग़म-ए-दौराँ न हुआ
आँधियों में भी ग़ुबार अपना परेशाँ न हुआ
वज़्अ पर हर्फ़ न आई दिया वहशत में भी
लफ़्ज़-ओ-मा'नी की तरह मैं कभी उर्यां न हुआ
वार क्या क्या न सहे तेग़ हवादिस की मगर
ऐसे बश्शाश रहे ज़ख़्म भी गिर्यां न हुआ
बुझ गया दिल का कँवल दाग़ से जलते जलते
गुल किसी शब ये चराग़-ए-शब-ए-हिजराँ न हुआ
सामना ऐसे बलाओं का रहा दुनिया में
मलक-उल-मौत भी आए तो हिरासाँ न हुआ
एड़ियाँ मैं ने ये रगड़ीं कि गढ़े डाल दिए
गोरकन का भी मैं शर्मिंदा-ए-एहसाँ न हुआ
मिस्ल-ए-नै नाला-कशी में मिरी गुज़री गुज़रे
दिल में नासूर तो ये है कोई पुरसाँ न हुआ
अबरू जाती अगर बे-असर आँसू बहते
शुक्र अंगुश्त-नुमा पंजा-ए-मिज़्गाँ न हुआ
उल्फ़त अबरू-ए-सनम की हुई पत्थर की लकीर
महव-ए-दिल से ख़त-ए-क़िस्मत किसी उनवाँ न हुआ
मुन्हरिफ़ क्यूँ रुख़-ए-महबूब से है ऐ वाइ'ज़
तू मुसलमान हुआ क़ाइल-ए-क़ुरआँ न हुआ
दिल से ना-चीज़ ज़माने में कोई चीज़ नहीं
मोल क्या मुफ़्त भी जिस का कोई ख़्वाहाँ न हुआ
हम भी तो देखते किस तरह निकलते गिर कर
चाह-ए-यूसुफ़ ये तिरा चाह-ए-ज़नख़दाँ न हुआ
कपड़े फाड़े से भी निकले न हरारत दिल की
रिश्ता-ए-शम्अ' कोई तार-ए-गरेबाँ न हुआ
नाला करने को भी मुँह चाहिए अल-क़ैस-ए-हज़ीं
कोई ज़ंगूला-ए-जम्माज़ा हुदी-ख़्वाँ न हुआ
सुफ़्ला-ओ-दूँ न कभी रौनक़-ए-महफ़िल होंगे
जुगनू दिन से कभी आलम में चराग़ाँ न हुआ
ऐ जुनूँ निकले न इक दाग़ से हसरत दिल की
दाग़ मुझ को है कि ताऊस-ए-गुलिस्ताँ न हुआ
हाए शंगर्फ़ है लिक्खे कि लब-ए-लालीं है
बात ये पूछते याक़ूत रक़म-ख़ाँ न हुआ
कोई लड़का न दम-ए-क़ैद हुआ दामन-गीर
कोई पत्थर मुझे संग-ए-रह-ए-ज़िंदाँ न हुआ
ऐ जुनूँ कुछ न मिला आबला-पाई का मज़ा
गोखरो पाँव में क्यूँ ख़ार-ए-मुग़ीलाँ न हुआ
क्या फ़रोमाया बढ़ेगा उसे हिम्मत क्या है
'बहर' दरिया का कभी चाह में तुग़्याँ न हुआ
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