मौत आती नहीं क़रीने की
मौत आती नहीं क़रीने की
ये सज़ा मिल रही है जीने की
मय से परहेज़ शैख़ तौबा करो
इक यही चीज़ तो है पीने की
तुम्हें कहता है आइना ख़ुद-बीं
बातें सुनते हो इस कमीने की
हो गया जब से बे-नक़ाब कोई
शम्अ' रौशन न फिर किसी ने की
चश्म-ए-तर आबरू तू पैदा कर
यूँ नहीं बुझती आग सीने की
अहल-ए-दुनिया से क्या बदी का गिला
ऐ 'तपिश' तू ने किस से की नेकी
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