ख़्वाह महसूर ही कर दें दर-ओ-दीवार मुझे

ख़्वाह महसूर ही कर दें दर-ओ-दीवार मुझे

घर को बनने नहीं देना कभी बाज़ार मुझे

मैं इसे दस्त-ए-अदू में नहीं जाने दूँगा

सर की क़ीमत पे भी महँगी नहीं दस्तार मुझे

मैं जो चलता हूँ तो आँखें भी खुली रखता हूँ

इतना सादा भी न समझें मिरे सालार मुझे

फिर तवाज़ुन में रहेगी मिरी नाव कब तक

जब डुबोने पे तुले हैं मिरे पतवार मुझे

या ज़माना मिरी तक़लीद में आ निकलेगा

या कहीं का न रखेंगे मिरे मेयार मुझे

अब मिरा हिज्र मुझे साथ लिए फिरता है

जाइए अब कोई साथी नहीं दरकार मुझे

इस तरह सोचते रहना नहीं अच्छा 'शहज़ाद'

फ़िक्र-ए-सेहहत ही न कर दे कहीं बीमार मुझे

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In Hindi By Famous Poet Shahzad Qamar. is written by Shahzad Qamar. Complete Poem in Hindi by Shahzad Qamar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.