किस हक़ीक़त का इंकिशाफ़ किया
किस हक़ीक़त का इंकिशाफ़ किया
दिल ने मुझ को मिरे ख़िलाफ़ किया
मेरे होने का ए'तिराफ़ किया
मुझ से जिस ने भी इख़्तिलाफ़ किया
तो ने मुझ को मुआ'फ़ कर डाला
मैं ने ख़ुद को नहीं मुआ'फ़ किया
आँख मैं गर्द-ए-ख़ुद-नुमाई थी
फिर मुझे आइने ने साफ़ किया
एक सूरत दिखाई देने लगी
मैं ने दिल में अजब शिगाफ़ किया
एक दुनिया तबाह कर डाली
एक ज़र्रे ने इंहिराफ़ किया
मस्जिदों में थे शोर-ओ-शर 'नय्यर'
मैं ने सहरा में एतकाफ़ किया
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