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हर एक गाम पे सदियाँ निसार करते हुए - शहज़ाद नय्यर कविता - Darsaal

हर एक गाम पे सदियाँ निसार करते हुए

हर एक गाम पे सदियाँ निसार करते हुए

मैं चल रहा था ज़माने शुमार करते हुए

यही खुला कि मुसाफ़िर ने ख़ुद को पार किया

तिरी तलाश के सहरा को पार करते हुए

मैं रश्क-ए-रेशा-ए-गुल था बदल के संग हुआ

बदन को तेरे बदन का हिसार करते हुए

मुझे ज़रूर किनारे पुकारते होंगे

मगर में सुन नहीं पाया पुकार करते हुए

में इज़्तिराब-ए-ज़माना से बच निकलता हूँ

तुम्हारे क़ौल को दिल का क़रार करते हुए

जहान-ए-ख़्वाब की मंज़िल कभी नहीं आई

ज़माने चलते रहे इंतिज़ार करते होए

मैं राह-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से गुज़रता जाता हूँ

कभी गुरेज़ कभी इख़्तियार करते हुए

नहीं गिरा मिरी क़ातिल अना का ताज महल

मैं मर गया हूँ ख़ुद अपने पे वार करते हुए

मैं और नीम-दिली से वफ़ा की राह चलूँ

मैं अपनी जाँ से गुज़रता हूँ प्यार करते हुए

यक़ीन छोड़ के नय्यर गुमाँ पकड़ता रहा

निगाह-ए-यार तिरा ए'तिबार करते हुए

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In Hindi By Famous Poet Shahzad Nayar. is written by Shahzad Nayar. Complete Poem in Hindi by Shahzad Nayar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.