आँख-मिचोली
वो इक नन्ही सी लड़की
बर्फ़ के गाले से नाज़ुक-तर
हवा में झूलती शाख़ों की ख़ुशबू
उस का लहजा था
चमकते पानियों जैसी सुबुक-रौ
उस की बातें थीं
वो उड़ती तितलियों के रंग पहने
जब मुझे तकती
तो आँखें मीच लेती
मगर अब वो नहीं है
बर्फ़ के गाले भी ग़ाएब हैं
हवा में झूलती शाख़ों में
लहजा है न ख़ुशबू है
चमकते पानियों पर तैरते हैं
खड़खड़ाते ज़र्द-रू पत्ते
वो उड़ती तितलियाँ जिन के परों पर
उस की रंगत थी
ख़ुदा जाने कहाँ किस हाल में हैं
मैं हर उजड़े हुए मौसम में
उस को याद करता हूँ
तो आँखें मीच लेता हूँ
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