कब तक कड़कती धूप में आँखें जलाएँ हम
कब तक कड़कती धूप में आँखें जलाएँ हम
साया दिखाई दे तो कहीं बैठ जाएँ हम
मिटती नहीं किसी से भी क़ुर्बत की दूरियाँ
गर खो गया हो तू तो तुझे ढूँड लाएँ हम
बे-नूर हो चली हैं तमन्ना की बस्तियाँ
कब तक चराग़-ए-याद-ए-गुज़िश्ता जलाएँ हम
तेरा वजूद बीती हुई ज़िंदगी की याद
तू आ चुके तो शहर में धूमें मचाएँ हम
सौ तरह की बहार है सौ रंग की ख़िज़ाँ
इस दिल की वुसअतों में कहीं खो न जाएँ हम
हर सानेहा पुकार के कहता है चुप रहो
कब तक दिलों की बात ज़बाँ तक न लाएँ हम
इस शहर-ए-ख़ामुशी में कोई जागता भी हो
'शहज़ाद' किस को सुब्ह का मुज़्दा सुनाएँ हम
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