इश्क़ वहशी है जहाँ देखेगा
इश्क़ वहशी है जहाँ देखेगा
हुस्न को सीने से लिपटा लेगा
ग़म अगर साथ न तेरा देगा
फिर तुझे कोई नहीं पूछेगा
जाग उट्ठेंगी पुरानी यादें
तू मगर ख़्वाब-ए-गिराँ चाहेगा
दिल में तूफ़ान उठेंगे लेकिन
एक पत्ता भी नहीं लरज़ेगा
हर तरफ़ छाएगी वो ख़ामोशी
अपनी आवाज़ से तू चौंकेगा
इन्ही ठहरे हुए लम्हों का ख़याल
दिल से तूफ़ाँ की तरह गुज़रेगा
न बसेंगे ये ख़राबे दिल के
कोई मुड़ कर न इधर देखेगा
ऐ मिरे हुस्न-ए-गुरेज़ाँ कब तक
तू मिरी क़द्र न पहचानेगा
मुझे ज़र्रा न समझने वाले
तू सितारों में मुझे ढूँडेगा
मुझ से कतरा के गुज़रने वाले
तू मिरी ख़ाक को भी चूमेगा
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