हाल उस का तिरे चेहरे पे लिखा लगता है
हाल उस का तिरे चेहरे पे लिखा लगता है
वो जो चुप-चाप खड़ा है तिरा क्या लगता है
यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ
दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है
यूँ तो हर चीज़ सलामत है मिरी दुनिया में
इक तअल्लुक़ है कि जो टूटा हुआ लगता है
ऐ मिरे जज़्ब-ए-दरूँ मुझ में कशिश है इतनी
जो ख़ता होता है वो तीर भी आ लगता है
जाने मैं कौन सी पस्ती में गिरा हूँ 'शहज़ाद'
इस क़दर दूर है सूरज कि दिया लगता है
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