आप भी नहीं आए नींद भी नहीं आई
आप भी नहीं आए नींद भी नहीं आई
नीम-वा दरीचों से झाँकती है तन्हाई
जाग जाग उठते हैं गन-कली के मीठे सुर
छेड़ छेड़ जाती है गेसुओं की पुर्वाई
यूँ मिरे ख़यालों में तेरी याद रक़्साँ है
जिस तरह फ़ज़ाओं में गूँजती है शहनाई
गर्द-ए-राह भी चुप है संग-ए-मील भी ख़ामोश
तालिबान-ए-मंज़िल की कुछ ख़बर नहीं आई
इक तरफ़ ग़म-ए-दुनिया इक तरफ़ तिरी यादें
आज कल हयूलों से खेलते हैं सौदाई
जिन गुलों ने पाया हो रंग-ओ-बू बगूलों से
कौन छीन सकता है उन गुलों की रानाई
ये तने तने अबरू ये हरा-भरा चेहरा
हम ने क़हर सी लज़्ज़त प्यार में नहीं पाई
अब तो साफ़ सुनता हूँ अपने दिल की हर धड़कन
और क्या दिखाएगी ये तवील तन्हाई
बज़्म-ए-दोस्त में 'शहज़ाद' तुम भी कुछ हँसो बोलो
चुप रहे से होती है दूर दूर रुस्वाई
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