ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है
Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
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Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
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कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही
हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के
सफ़र का नश्शा चढ़ा है तो क्यूँ उतर जाए
आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए
ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा
नया खेल
'नजमा' के लिए एक नज़्म
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए