तुझ से मिल कर भी न तन्हाई मिटेगी मेरी
दिल में रह रह के यही बात खटकती क्यूँ है
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दरिया-ए-ख़ूँ
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
कब समाँ देखेंगे हम ज़ख़्मों के भर जाने का
जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस
ला-ज़वाल सुकूत
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें
भूली-बिसरी यादों की बारात नहीं आई
ये क्या हुआ कि तबीअ'त सँभलती जाती है
ख़्वाब
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता