तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खूँगा
Gulzar
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नशात-ए-ग़म भी मिला रंज-ए-शाद-मानी भी
साए
सारी दुनिया के मसाइल यूँ मुझे दरपेश हैं
वापसी
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
ख़्वाब
जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को