शहर-ए-उम्मीद हक़ीक़त में नहीं बन सकता
तो चलो उस को तसव्वुर ही में तामीर करें
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Allama Iqbal
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है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
कच्चे रस्तों से
बताऊँ किस तरह अहबाब को आँखें जो ऐसी हैं
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है
एक नज़्म
दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं
नया उफ़क़
मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना
आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए
हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे
गुज़रे थे हुसैन इब्न-ए-अली रात इधर से
तिरा ख़याल भी तेरी तरह सितमगर है