पिछले सफ़र में जो कुछ बीता बीत गया यारो लेकिन
अगला सफ़र जब भी तुम करना देखो तन्हा मत करना
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जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
गुज़रे थे हुसैन इब्न-ए-अली रात इधर से
तेरे सिवा भी कोई मुझे याद आने वाला था
नफ़ी से इसबात तक
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
गुलाब टहनी से टूटा ज़मीन पर न गिरा
एक काली नज़्म
मुझ को मिलना है 'वहीद-अख़्तर' से
किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे