पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
यूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात
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ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
एक नज़्म
एक काली नज़्म
तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है
गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए