नज़राना तेरे हुस्न को क्या दें कि अपने पास
ले दे के एक दिल है सो टूटा हुआ सा है
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अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे
न ख़ुश-गुमान हो इस पर तू ऐ दिल-ए-सादा
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
मैं सोचता हूँ मगर याद कुछ नहीं आता
अजीब काम
एक ख़ुश-ख़बरी
हँस रहा था मैं बहुत गो वक़्त वो रोने का था
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
तिलिस्म ख़त्म चलो आह-ए-बे-असर का हुआ
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं