मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(428) Peoples Rate This
तेरे सिवा भी कोई मुझे याद आने वाला था
अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी
'नजमा' के लिए एक नज़्म
तुझ से मिल कर भी न तन्हाई मिटेगी मेरी
चुपके से इधर आ जाओ
इक बूँद ज़हर के लिए फैला रहे हो हाथ
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
ये जगह अहल-ए-जुनूँ अब नहीं रहने वाली
कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे