लोग सर फोड़ कर भी देख चुके
ग़म की दीवार टूटती ही नहीं
Anwar Masood
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
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हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को
मुझ को ले डूबा तिरा शहर में यकता होना
ख़ौफ़ का क़हर
एक ख़ुश-ख़बरी
है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
मैं सोचता हूँ मगर याद कुछ नहीं आता
मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है