क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
क्यूँ आज उस का नाम मिरा दिल दुखा गया
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अहद-ए-हाज़िर की दिल-रुबा मख़्लूक़
ख़ौफ़ का क़हर
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
फ़रार
ख़्वाब का दर बंद है
गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज
निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
'नजमा' के लिए एक नज़्म