कोई नया मकीन नहीं आया तो हैरत क्या
कभी तुम ने खुला छोड़ा ही नहीं दरवाज़ों को
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उम्मीद ओ बीम
साए
फ़रेब-दर-फ़रेब
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
इक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं
एतराफ़
तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को
किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
ज़वाल की हद
लोग सर फोड़ कर भी देख चुके
नया अमृत