कौन सी बात है जो उस में नहीं
उस को देखे मिरी नज़र से कोई
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नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
दाम-ए-उल्फ़त से छूटती ही नहीं
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
ख़्वाब का दर बंद है
खेल का नतीजा
काग़ज़ की कश्तियाँ भी बहुत काम आएँगी
फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
देखने के लिए इक चेहरा बहुत होता है
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है