काग़ज़ की कश्तियाँ भी बहुत काम आएँगी
जिस दिन हमारे शहर में सैलाब आएगा
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दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
एक लम्हे से दूसरे लम्हे तक
इक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
बुनियाद-ए-जहाँ में कजी क्यूँ है
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
गुम-शुदा
नए अहद का नया सवाल
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
कौन सी बात है जो उस में नहीं