जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा
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जिस्म की कश्ती में आ
ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता
ख़लीलुर्रहमान आज़मी की याद में
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
खुले जो आँख कभी दीदनी ये मंज़र हैं
ये क्या हुआ कि तबीअ'त सँभलती जाती है
मैं अकेला सही मगर कब तक
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस
पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ
कौन सी बात है जो उस में नहीं
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो