जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
कितनी वहशत हिज्र की लम्बी रात में होती है
Wasi Shah
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(423) Peoples Rate This
एक काली नज़्म
शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
जम्अ करते रहे जो अपने को ज़र्रा ज़र्रा
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
वो बेवफ़ा है हमेशा ही दिल दुखाता है
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
देख दरिया को कि तुग़्यानी में है
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
फ़ैसले की घड़ी