जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है
ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है
Jaun Eliya
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Mir Taqi Mir
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मैं अकेला सही मगर कब तक
तन्हाई
ख़्वाब
अजीब काम
गुज़रे थे हुसैन इब्न-ए-अली रात इधर से
दरिया-ए-ख़ूँ
बे-ताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हम को
ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें
'नजमा' के लिए एक नज़्म
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई