हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-पशीमान पशीमान सा क्यूँ है
Wasi Shah
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बहते दरियाओं में पानी की कमी देखना है
ख़जिल चराग़ों से अहल-ए-वफ़ा को होना है
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
कौन सी बात है जो उस में नहीं
क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस
तेरे सिवा भी कोई मुझे याद आने वाला था
मिशअल-ए-दर्द फिर एक बार जला ली जाए
एक और मौत
वामांदगी-ए-शौक़