हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
अज्दाद कहीं पेड़ भी कुछ बो गए होते
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ला-ज़वाल होने का
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे
रात जुदाई की रात
तन्हाई
आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
एक और साल गिरह
बहते दरियाओं में पानी की कमी देखना है