बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है
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एक मंज़र
हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
तिलिस्म ख़त्म चलो आह-ए-बे-असर का हुआ
तेरे सिवा भी कोई मुझे याद आने वाला था
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
अब जी के बहलने की है एक यही सूरत
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
कच्चे रस्तों से
तेरी साँसें मुझ तक आते बादल हो जाएँ
एक और साल गिरह