बताऊँ किस तरह अहबाब को आँखें जो ऐसी हैं
कि कल पलकों से टूटी नींद कि किर्चें समेटीं हैं
Habib Jalib
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आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
जिस्म की कश्ती में आ
ख़ौफ़ का क़हर
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
कौन सी बात है जो उस में नहीं
अब के बरस
भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया
जान-बूझ कर समझ कर मैं ने भुला दिया
सारी दुनिया के मसाइल यूँ मुझे दरपेश हैं
लोग सर फोड़ कर भी देख चुके
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
एक और मौत