अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है
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जान-बूझ कर समझ कर मैं ने भुला दिया
मेरी ज़मीं
आँखों में तेरी देख रहा हूँ मैं अपनी शक्ल
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं
इक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं
मौत
हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे