आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए
हम को शुमार करती रही दुश्मनों में रात
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
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Anwar Masood
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए
मिशअल-ए-दर्द फिर एक बार जला ली जाए
किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को
नशात-ए-ग़म भी मिला रंज-ए-शाद-मानी भी
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
मुझ को ले डूबा तिरा शहर में यकता होना
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं