नफ़ी से इसबात तक
रात का ये समुंदर तुम्हारे लिए
तुम समुंदर की ख़ातिर बने हो
दिलों में कभी ख़ुश्कियों की सहर का तसव्वुर न आए
इसी वास्ते तुम को बे-बादबाँ कश्तियाँ दी गई हैं
सफ़र रात के उस समुंदर की गहराइयों का सफ़र-ए-बे-कराँ है
अकेले हो तुम और अकेले रहोगे
मगर आसमाँ की जगह आसमाँ और ज़मीं की जगह ये ज़मीं
तुम से क़ाएम है
दाइम है ये रात
और रात के तुम अमीं हो
अगर आँख में नूर का कोई मंज़र है
उस की हिफ़ाज़त करो
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