ये बात रोज़-ए-अज़ल से तय है
ज़मीन जिस्मों का बोझ उठाएगी
आसमाँ पर रहेंगी रूहें
मगर कोई है जो ये बताए
हमारी परछाइयों की क़ब्रें
कहाँ बनेंगी?
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(437) Peoples Rate This
आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
मुझ को मिलना है 'वहीद-अख़्तर' से
एक और साल गिरह
शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है