क्यूँ मलाल है इतना
हार जीत में तुम को
फ़र्क़ क्यूँ नज़र आया
खेल का नतीजा तो
खेलने की लज़्ज़त है
जो तुम्हारे हिस्से में
और लोगों की निस्बत
कुछ ज़ियादा आई है
फिर मलाल कैसा है
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फ़ैसले की घड़ी
फ़रार
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
नया उफ़क़
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है