रात का बीतना दिन का आना
कौन सी ऐसी नई बात है
जिस पर हम सब
इतने अफ़्सुर्दा हैं
खिड़की खोलो
उस तरफ़ सामने देखो
वो खड़ी है छत पर
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(473) Peoples Rate This
अब के बरस
तन्हाई
ग़म की दौलत बड़ी मुश्किल से मिला करती है
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है
एक और साल गिरह
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
मंज़र गुज़िश्ता शब के दामन में भर रहा है
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की