नींद की सोई हुई ख़ामोश गलियों को जगाते
गुनगुनाते
मिशअलें पलकों पे अश्कों की जलाए
चंद साए
फिर रहे थे
रात जब हम ख़्वाब की दुनिया से वापस आ रहे थे
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Habib Jalib
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो' थी नहीं कुछ कम है
शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
फ़रार
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
तुझ से मिल कर भी न तन्हाई मिटेगी मेरी
तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
कौन सी बात है जो उस में नहीं
पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
ज़बाँ मिली भी तो किस वक़्त बे-ज़बानों को