एक आहट अभी दरवाज़े पे लहराई थी
एक सरगोशी अभी कानों से टकराई थी
एक ख़ुश्बू ने अभी जिस्म को सहलाया था
एक साया अभी कमरे में मिरे आया था
और फिर नींद की दीवार के गिरने की सदा
और फिर चारों तरफ़ तेज़ हवा!!
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बताऊँ किस तरह अहबाब को आँखें जो ऐसी हैं
इन दिनों मैं भी हूँ कुछ कार-ए-जहाँ में मसरूफ़
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को
अहद-ए-हाज़िर की दिल-रुबा मख़्लूक़
वो मोड़
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
अक्स-ए-याद-ए-यार को धुँदला किया है
निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए